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फीस की वसूली भारी, हाथ खड़े कर रहे जब आई वेतन देने की बारी

कई नामी स्कूलों में शिक्षक शिक्षिकाओं को नहीं मिल रहा कई महीनों से वेतन

सोशल मीडिया पर इस तरह उठ रहे सवाल

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कम वेतन पाकर विद्यार्थियों को अच्छी शिक्षा देने का काम निजी विद्यालयों में काम करने वाले शिक्षक शिक्षिकाएं वर्षों से बखूबी निभा रहे हैं ।।यही कारण है कि शासकीय स्कूलों की बजाए निजी विद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या अधिक रहती हैं । इतनी अच्छी शिक्षा और इतना अच्छा परिणाम देने के बाद भी निजी स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षक शिक्षिकाएं आर्थिक संकट से उबर नहीं पाते हैं । वह इसलिए कि खर्चे तो अधिक होते है लेकिन यहां मिलने वाला वेतन उसकी अपेक्षा बहुत ही कम होता है। विपरीत परिस्थिति में भी रोजगार की मजबूरी के चलते कई योग्य शिक्षक शिक्षिकाए अपना शोषण होने दे रहे हैं। और यह शोषण आज भी कई विद्यालयों में जारी हैं।

वह इसलिए कि यहां काम करने वाले शिक्षक शिक्षिकाए यदि अपने हक के लिए आवाज उठाते हैं तो, उन्हें स्कूल से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। उसमें देरी नहीं की जाती फलस्वरूप निजी स्कूलों में पढ़ाने वाले ऐसे शिक्षक शिक्षिकाएं अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ मुंह नहीं खोल पाते हैं। वर्तमान में भी कुछ ऐसा ही चल रहा हैं। कई नामी स्कूल संचालक पिछले 5 माह से शिक्षक शिक्षिकाओं का वेतन नहीं दे रहे हैं। जबकि अभी संकट की घड़ी चल रही है ,और सभी को रुपयों की बहुत आवश्यकता है । एक तो कोरोना का संकट और दूसरा घर में आर्थिक संकट , इन दोनों से जूझते हुए भी ऐसे स्कूलों में काम करने वाले शिक्षक शिक्षिकाएं अपने खुद का डाटा इस्तेमाल करते हुए बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा दे रहे हैं ।

वह भी ऐसे हालातों में जब उन्हें उनके स्कूलों से वेतन नहीं मिल रहा है । अपने साथ हो रही इन ज्यादतियों को खुद इन शिक्षकों ने बयां किया है । नाम न छापने की शर्त पर शिक्षक शिक्षिकाओं ने बताया कि, वे इसलिए ऑनलाइन शिक्षा दे रहे हैं ,ताकि बच्चों का भविष्य ना बिगड़े । ऐसे कुछ नामी स्कूलों के संचालक अपने स्कूलों में फीस की वसूली तो भारी भरकम कर रहे हैं । लेकिन शिक्षक शिक्षकों का वेतन देने की बारी आती है तो हाथ खड़े कर रहे हैं । पिछले 5 से 6 माह से उन्हें वेतन नहीं मिला है , और वे आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं । इन शिक्षक शिक्षिकाओं ने बताया कि कई विधवा महिलाएं शिक्षिका के रूप में स्कूलों में काम करती हैं।

शिक्षिकाएं वेतन न मिलने पर पति की कमाई पर काम चला लेती है लेकिन जो शिक्षक है उनका घर तो उन्हीं की कमाई से चलता है पुरुषों की हालत भी यही है उनकी भी कमाई अभी नहीं हो रही हैं ।ऐसे में घर का संचालन करना बच्चों की पढ़ाई कराना ,उनके स्कूलों की फीस जमा करना भी मुश्किल भरा हो गया है । सभी चीजें एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं । उन्होंने बताया कि कई स्कूलों में कक्षा 9वीं से लेकर 12वीं तक के विद्यार्थियों की फीस लगभग जमा हो रही है। वह इसलिए कि कक्षा 9वी में नामांकन के समय अभिभावकों को फीस जमा करना ही पड़ी, ताकि बच्चे का भविष्य न बिगड़े। वही दसवीं में परीक्षा फॉर्म व प्रवेश सूची में नाम दर्ज होने के लिए फीस जमा करना पड़ी।

इसी प्रकार कक्षा ग्यारहवीं मैं रजिस्ट्रेशन तो कक्षा 12वीं में परीक्षा फार्म एडमिट कार्ड के लिए फीस जमा कराना पड़ी। इस तरह नौवीं से 12वीं तक की फीस तो स्कूल संचालकों को लगभग मिल ही रही है । बावजूद इसके शिक्षक शिक्षिकाओं का वेतन देने में आना कानी की जा रही है। जबकि स्कूल संचालकों को कम खर्च करना पड़ा है। स्टाफ की कटौती की गई बड़े स्कूलों में मात्र 8 से 10 शिक्षक शिक्षिकाओं से ही काम चलाया गया । न तो बिजली का खर्च जनरेटर का खर्च और ना ही किसी को चाय पिलाना । फिर भी कम स्टॉप होने पर भी 5 – 6 माह से वेतन नहीं मिला है। शिक्षक शिक्षिकाओं ने यह भी बताया कि कई बड़े निजी स्कूलों में शिक्षक शिक्षकों के वेतन को लेकर भी बड़ी धांधली हो रही है ।

वेतन को लेकर जो जानकारियां प्रेषित की गई हैं वह और शिक्षकों को मिलने वाले मूल वेतन में बहुत अंतर है।निजी स्कूलों में काम करने वाला करीब 70 से 80% स्टाफ साल भर से घर पर ही बैठा हैं, जिनका गुजर-बसर मुश्किल हो गया है। उनका सब कुछ इसी काम पर निर्भर था और यह रोजगार भी उनके पास नहीं रहा। स्कूल संचालकों ने बुलाने का आश्वासन दिया लेकिन अभी तक उन्हें काम पर नहीं बुलाया है। ऐसे में शिक्षा जगत में इन दिनों बहुत बुरे हालात चल रहे हैं । इसके ठीक विपरीत शासकीय स्कूलों में काम करने वाले शिक्षक शिक्षिकाओं को स्कूल बंद होने के बाद भी बराबर वेतन मिलता रहा है।

जबकि उनके वेतन और निजी स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षक शिक्षकों के वेतन में कोई तुलना नहीं है, जमीन आसमान का अंतर है । जो सुविधाएं शासकीय शिक्षक शिक्षिकाओं को मिलती हैं उसके मुकाबले निजी स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षक शिक्षिकाओं को कोई सुविधा नहीं मिलती। स्थिति यह है कि वेतन के लाले पड़े हुए हैं । शिक्षक शिक्षिकाओं ने दावा किया है कि यदि जिम्मेदारों को वस्तुस्थिति देखना है तो वह थोड़ा अपने केबिन से बाहर निकले और इन विद्यालयों की जांच करें, ताकि दूध का दूध और पानी का पानी सामने आ सके और पीड़ित शिक्षक शिक्षिकाओं को राहत मिल सके।

क्या इस बार कम कमाई में नहीं चला सकते थे काम ?

कोरोना संकट की इस घड़ी में जहां लोग एक दूसरे के लिए मसीहा बनकर खड़े हो रहे हैं। और मदद करने को तत्पर है । वहीं दूसरी ओर कई नामी निजी स्कूल संचालक अभी भी पूरी कमाई करने पर अडे हुए हैं। जबकि यही वह मौका था जब वे अभिभावकों को तथा अपने स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक शिक्षिकाओं को राहत दे सकते थे। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं हो रहा इसे नामी स्कूलों में फीस की वसूली पूरी की जा रही है। अभिभावकों द्वारा गुहार लगाने के बाद भी फेस में कोई कमी नहीं की जा रही हैं ।और बार-बार फीस जमा करने के लिए संकट की इस घड़ी में भी नोटिस भेजे जा रहे है।

ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या वर्षों से अभिभावकों से मनमाना शुल्क लेने वाले और मोटी कमाई करने वाले ऐसे नामी स्कूल संचालक क्या इस बार उन्हें राहत नहीं दे सकते थे । क्या इस बार सिर्फ इतनी फीस नहीं ले सकते थे जितने में उनके स्कूल का खर्च निकल जाता अभिभावकों को भी राहत मिल जाती और शिक्षक शिक्षिकाओं को भी वेतन मिल जाता। अपनी कमाई को कुछ कम कर परोपकार का काम करना किसी ने भी मुनासिब नहीं समझा। यही कारण है कि अब कहीं पर फीस माफ करने के लिए तो कहीं पर शिक्षक शिक्षिकाओं द्वारा वेतन नहीं मिलने पर आवाज उठने लगी हैं।

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