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स्वास्थ्य सेवाओं के शुल्क का निर्धारण क्यों नहीं?
घरेलू गैस टंकी, बिजली बिल, अपना घर आदि में सब्सिडी तो दवाइयों पर क्यों नहीं?
कोरोना महामारी के चलते इन दिनों अस्पतालों में मरीजों की भरमार है, और पीड़ित लोग अपनी संपत्ति बेचकर भी उपचार कराने को मजबूर हैं। वह इसलिए कि बात जान पर बन आई है और उन्हें अस्पतालों का भारी-भरकम बिल चुकाना पड़ रहा है तो महंगी दवाइयां खरीदना पड़ रही हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि सरकार के नुमाइंदे व राजनीतिक दलों के नेता इस संवेदनशील मुद्दे को लेकर गंभीर नजर क्यों नहीं आ रहे हैं । वह जनता को राहत मिले ऐसे उपाय की पहल क्यों नहीं कर रहे हैं।
सवाल यह भी उठता है कि जिस तरह सरकार ने सिर्फ सीटी स्कैन का शुल्क 3 हजार रुपए निर्धारित किया है । इसी तरह अन्य स्वास्थ्य सेवाओं का शुल्क भी निर्धारित क्यों नहीं किया। जबकि अस्पतालों में अन्य स्वास्थ्य शुल्क मनमाने तरीके से वसूले जा रहे हैं। वर्तमान में मरीजों के उपचार का बिल लाखों रुपए बनाया जा रहा है, जिसमें अस्पताल के अलग-अलग शुल्क दर्शाए गए हैं । अब ऐसे में मरीज व उनके परिजनों को राहत कैसे मिलेगी जबकि उन्हें डॉक्टरों की लिखी महंगी दवाइयां भी खरीदना पड़ रही हैं।
महंगी दवाइयों को लेकर भी सवाल उठ खड़ा हुआ है कि जब घरेलू गैस टंकी, बिजली का बिल, अपना घर आदि पर सब्सिडी दी जा सकती हैं तो दवाइयों पर क्यों नहीं ? हालात तो यह है कि स्वास्थ्य सेवाएं देने वालों के सामने मानो सरकार भी नतमस्तक है।लगता है इसी का परिणाम है कि स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर मनमाना शुल्क वसूला जा रहा है। और जिम्मेदार मुक दर्शक बने हुए हैं।
अस्पताल का बिल हुआ वायरल
वैसे तो देश के बड़े-बड़े शहरों में बहुमंजिला इमारत वाले बड़े बड़े अस्पताल हैं जहां पर स्वास्थ्य सेवाओं का शुल्क भी भारी भरकम है, लेकिन मध्यप्रदेश के देवास शहर के एक निजी अस्पताल का बिल सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है जिसमें स्वास्थ्य सेवाओं का जो शुल्क दर्शाया गया वह भी चौंकाने वाला है । इस बिल में अपने ही मरीज को 6 बार देखने का विजिट शुल्क 18 हजार दर्शाया गया है । यानी प्रति विजिट 3 हजार रुपए शुल्क जोड़ा गया है। इसके अलावा अन्य शुल्क भी अधिक है ,जो कि मध्यम वर्ग के लिए वहन करना मुश्किल भरा है। ऐसे में यदि सरकार राहत के कोई उपाय करें तो ही मरीज व उनके परिजनों को राहत मिल सकती हैं।