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सभापति चुनाव में पत्रकारों को रोकने का निर्णय किसका ?

प्रशासन की हठधर्मिता पर सत्ताधारी नेताओं की चुप्पी से उपजे कई सवाल।

आज से काली पट्टी बांधकर करेंगे काम

देवास। सभापति चुनाव में पत्रकारों के प्रवेश पर रोक को लेकर विवाद बढ़ता जा रहे हैं। जिला प्रशासन व पत्रकारों के बीच यह मामला अब तल्ख रूप लेता जा रहा है। पत्रकारों ने जहां शासकीय खबरों का बहिष्कार करने का फैसला लिया वही गुरुवार रात बैठक आयोजित कर चरणबद्ध आंदोलन की शुरुआत करने का निर्णय ले लिया है । आज से पत्रकार काली पट्टी बांधकर काम करेंगे। उधर अब यह सवाल उठने लगा है कि आखिर नगर निगम में सभापति चुनाव के दौरान पत्रकारों के प्रवेश पर रोक का निर्णय किसका था? अधिकारियों द्वारा पत्रकारों को रोकने को लेकर सत्ताधारी दल के नेताओं की चुप्पी से कई सवाल उठ खड़े हुए हैं। पत्रकारों के साथ हुई इस घटना को लेकर इतना समय बीतने पर भी सत्ताधारी नेताओं की चुप्पी से यह आशंका जाहिर होने लगी है कि कहीं ना कहीं इन नेताओं की मौन स्वीकृति इस मामले को लेकर है। और यदि नहीं तो अभी तक इन सत्ताधारी नेताओं का कोई बयान सामने क्यों नहीं आया है । क्या देवास के सत्ताधारी नेता पत्रकारों के साथ इस तरह का व्यवहार पसंद करते हैं या वे मीडिया से दूरी बनाना चाहते हैं। कारण यह है कि इस मामले में प्रशासनिक अधिकारी भी अभी तक मौन है इससे लगता है कि कहीं ना कहीं उन पर भी दबाव बना हुआ है हालाकि अभी तो यह मामला पत्रकारों व जिला प्रशासन तक ही सीमित है। लेकिन इस मामले में पर्दे के पीछे किसकी भूमिका है यह उजागर होना अभी बाकी है। पत्रकारों द्वारा सवाल तो यह भी उठाया जा रहा है कि आखिर सभापति चुनाव में उस दिन नगर निगम में ऐसा क्या हुआ की मीडिया को दूर रखा गया और प्रवेश पर सख्ती से रोक लगाई गई। क्योंकि बात यदि अनाधिकृत प्रवेश की ही थी तो कई भाजपा नेता व कार्यकर्ता भी अनाधिकृत रूप से प्रवेश कर गए थे और अंदर मौजूद थे। ऐसे में जिला प्रशासन के अधिकारियों का यह तर्क देना कि अनाधिकृत प्रवेश पर रोक है किसी के गले नहीं उतर रहा है।

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